अपना आप यूँ महसूस होता है कि जैसे दूर साहिल पर बैठी एक तन्हा लड़की जो अपने तमाम ख़्वाबों को प्यारे प्यारे सुंदर सुंदर जज़्बों को अपनी मुट्ठी में क़ैद कर लेना चाहती हो मगर फिर जब उस के बंद हाथों से रेत धीरे धीरे से समुंदर की तरफ़ वापस लौट जाती है तो यूँ महसूस होता है कि जैसे उस के सारे ख़्वाब सुंदर सुंदर सारे जज़्बे आहिस्ता आहिस्ता उस की झील सी आँखों से बह रहे हो और समुंदर से गले मिल रहे हो