गुलशन का तक़ाज़ा है कि मय-ख़ाना बना दे मय-ख़ाना में इक महफ़िल-ए-रिंदाना बना दे मय-कश कोई मय पी के मुझे देगा दुआएँ ऐ साक़ी-ए-फ़ितरत मुझे पैमाना बना दे आशिक़ हूँ मुझे अक़्ल मुआफ़िक़ नहीं आती बेहतर तो यही है मुझे दीवाना बना दे उल्फ़त मिरा सर्माया-ए-हस्ती हो ख़ुदाया फ़ुर्क़त को मिटा कर उसे अफ़्साना बना दे मैं सोख़्ता-जाँ सोज़-ए-मोहब्बत का तमाशा दुनिया को दिखा दूँ मुझे परवाना बना दे बुत-गर भी तू ख़ुद बुत भी तू बुत-ख़ाना भी तू है बुत बन के मिरे सीना को बुत-ख़ाना बना दे गर नज़र-ए-इनायत हो 'पुरी' पर तो दुआ है दुनिया की हवस से इसे बेगाना बना दे