मेरी ख़ामोशी By Nazm << ख़याल-ए-वस्ल ये तुम ने क्या कहा था >> मेरी ख़ामोशी में वक़्त की आवाज़ पिन्हाँ है इस में है शम्अ की लर्ज़ां जुम्बिश और आग की गर्मी तूफ़ान का इज़्तिराब है और सैलाब की तवानाई मेरी ख़ामोशी में इंक़िलाब-ए-ज़माना निहाँ है Share on: