ये तुम ने क्या कहा था इस नीले आकाश को बढ़ के छूना है हर लम्हा आगे बढ़ते रहना है लेकिन ऐ काश ऐसा होता तुम मुझ से बिछड़ न पाते मैं राह की हर इक दुश्वारी को हँसते हँसते सह लेती दर्द का जंगल रस्ते में गर आ जाता न मैं डरती न घबराती आकाश को बढ़ के छू लेती चाँद सितारे तोड़ के मैं ले आती लेकिन अब रस्ते पे खड़ी हूँ मैं तन्हा और सोच रही हूँ जो तुम ने कहा था मुझ से जो वा'दा लिया था मुझ से हिम्मत जुरअत लफ़्ज़ों की हुरमत पे क़ाएम रह कर अपने क़लम की सच्चाई को साथ हमेशा रख कर आगे बढ़ते रहना आकाश को बढ़ के छू लेना ये वा'दा पूरा करना है और आगे बढ़ते रहना है