मेरी मौत के मसीहा! तीन बर्र-ए-आज़मों पे तुम ने मेरा पीछा किया है मौसम बदलते रहे तक़दीर की तरह मैं शहर शहर फिरा धूप की तरह मैं ने ख़ामोशियाँ लफ़्ज़ों के सुपुर्द कीं ज़बान के लफ़्ज़ बदले मगर तुम इक तारीक सुरंग की तरह साया साया मेरे शुऊर में उतरते चले गए हो मेरे ज़ेहन मेरे जिस्म मेरे क़ल्ब के माकूस रुख़! मेरी तहरीरों के आसेब! तुम मेरी तंहाई हो मेरे वजूद की इंतिहा और शिकस्त चाहे हुए बदन तुम्हारी आग़ोश में राख हो गए हैं अबदी ख़ामोश हरीफ़! तुम काएनात के तमाम नूर के साथ शतरंज खेलते रहे हो मैं नय तुम्हारी क़ुव्वतों की हमा-गीर गुंजलक बिसात पे ख़ाना-ब-ख़ाना... इश्क़ और लफ़्ज़ों की सलीबें बिछाईं: तुम हवाओं की मिसाल मेरे आस-पास बरसते रहे तुम हर शाम फूलों पे यलग़ार करते पानियों पे चलते रहे हो ये जानते हुए भी कि मेरे लफ़्ज़ रेत के चेहरे पे खिंचे हुए बे-सबात नक़्श हैं मैं ने हर इब्तिदा हर इंतिहा का इसबात किया है फ़ासलों की तरह तुम सब कुछ निकलते चले गए हो हमारा झगड़ा ता-उम्र जारी रहेगा मेरे साँसों के साथी और दुश्मन: मेरे हम-शक्ल: मुक़द्दर की बंद किताब: मैं ने तुम्हारे राज़ जानने चाहे कैलेंडर की तारीख़ों में तुम्हें पढ़ना चाहा पलकों के दरमियान तुम्हारे लिबास के ना-मालूम तार बिछाए याद रखो! हर रौशनी ने तुम्हें अपने फ़ानी शोलों में लपेटना चाहा मगर वक़्त की कलीद! तुम ने कुंजियों का गुच्छा न जाने किस मिट्टी में दफ़्न कर दिया है तुम झूटे लफ़्ज़ों की तरह मेरी उँगलियों में से फिसलते चले गए हो