तू ने सर्द हवाओं की ज़बाँ सीखी है तेरे ठंडे लम्स से धड़कनें यख़-बस्ता हुईं और मैं चुप हूँ मैं ने वक़्त-ए-सुब्ह चिड़ियों की सुरीली चहचहाहट को सुना है और मेरे ज़ेहन के सागर में नग़्मे बुलबुले बन कर उठे हैं तेरे कड़वे बोल से हर-सू हैं आवाज़ों के लाशे और मैं चुप हूँ मैं ने वो मासूम प्यारे गुल-बदन देखे हैं जिन के मरमरीं जिस्मों में पाकीज़ा मोहब्बत के नशेमन हैं तिरे इन खुरदुरे हाथों ने ये सारे नशेमन नोच डाले और मैं चुप हूँ मैं ने देखे हैं वो चेहरे चाँद जैसे ग़ुंचा-सूरत जिन की आँखें आइना हैं आने वाले मौसमों का तू ने उन आँखों में भी काँटे चुभोए और मैं चुप हूँ बा-कमाल ओ बा-सफ़ा वो लोग भी देखे हैं मैं ने जिन के होंटों से खिले हैं सिद्क़ ओ दानाई के फूल तू ने उन होंटों को घोला ज़हर में और मैं चुप हूँ