मेरी सल्तनत By Nazm << शरारती चाँद मेरी ख़ुश-फ़हमी >> तोड़ कर हज़ार टुकड़ों में मुझे बैठे हो कब से मुझ पर नज़रें गड़ाए कि अब बिखरूँ और तब बिखरूँ तोड़ना तुम्हारी सरहद में था और बिखरना मेरी हर जगह तुम्हारी हिकमत नहीं है मेरी जान Share on: