तुम्हारी दीद की ख़्वाहिश लिए जब भी तुम्हारी झील आँखों तक पहुँचती हैं वहाँ पहले से ही इक आँख या'नी तीसरी मौजूद होती है ये सुन रक्खा था मैं ने रोज़-मर्रा की मिसालों में कि अंधों में जो काना हो इसी का राज चलता है मगर अंदर ही अंदर हर कोई वाक़िफ़ है भीतर जो कहानी है यहाँ काना तो बीना शख़्स पर भी राज करता है ये काना क्या कोई दज्जाल है तुम जिस से डर कर मुझ से पहले उस को अपना आप अच्छे से दिखाती है तुम अपनी दीद का पहला निवाला उस को देती हो मुझे झूटा खिलाती हो नहीं खाना मुझे दज्जाल का झूटा ये मैं उस से नहीं बस दिल ही दिल में ख़ुद से कहता हूँ उसे मा'लूम ही कब है कि ये जो तीसरी है उस के रेटीना का पिछ्ला दर जहाँ खुलता है वो दीवार दुनिया को निकलती है मेरी बर्दाश्त सह जाए अगर बस एक ही दज्जाल तुम को देख सकता हो यहाँ लेकिन तुम्हारा सब का सब दुनिया में जितने हैं वो सब के सब मैं ये सब सह नहीं सकता तुम्हें देखे बिना भी रह नहीं सकता मुझे बी पी का कोई मसअला पहले नहीं था हाँ मगर अब ख़ून मेरा खोलता है जब कभी गाड़ी चलाते वक़्त कोई बोर्ड आ जाए जहाँ लिखा हुआ हो स्पीड कम रक्खें यहाँ से कुछ क़दम आगे सड़क पर कैमरे की आँख तुम को देखती है