मैं अपने बदन की मिट्टी से पूछ रहा हूँ तू कितनी छनी हुई है सच्चाई तुझ में कितनी घुली है मोहब्बत का रंग कितना है हज़ारों सूरज डूब चुके हैं हज़ारों सूरज उभरेंगे सुना है नक़ली दिल बिकने लगे हैं कहीं मोहब्बत न ख़रीद लेना ऐ मेरी मिट्टी मुझ से वफ़ा कर इस से पहले कि तू अपनी हम-जोलियों से जा मिले