औरत! तेरे कितने रूप, तेरे कितने नाम मोहब्बत के इस बे-कराँ सफ़र में कितने पड़ाव, कितने मक़ाम कभी कली, कभी फूल और कभी मुरझाई हुई पंखुड़ी कभी अनार, कभी माहताब और कभी फुलझड़ी तख़्लीक़ का मम्बा, शक्ति का ख़ज़ीना तेरी ज़ात मेहवर-ए-ला-मुतनाही सिलसिला-ए-हयात-ओ-ममात शफ़क़त, मोहब्बत, ईसार-ओ-वफ़ा सब तेरे रूप सीता, सावित्री, राधा, मीरा सच्ची चाहत के नुक़ूश एक फ़क़त चाहत का अतिय्या, तेरा ये हीरे का रूप औरत में हो गर ख़ुद-ए'तिमादी दुशासन द्रौपदी की स्वागत को आए भेरों ख़ुद शेरावाली की इफ़्फ़त बचाए औरत ही हासिल-ए-तख़्लीक़-ए-दुनिया है औरत ही शुऊर-ए-आदम का पेश-ख़ेमा है ख़ुदा ने जो बख़्शा है तुझे नसों का जाल अजब उस की क़ुदरत है अजब उस का कमाल कहीं मेनका तो कहीं मर्यम है तू कहीं औलाद की जूया ज़ौजा-ए-ज़करया है तू इंजील ओ क़ुरआन सब तेरे रतब-उल-लिसान कि तू ही अस्ल में है धरती की शान ममता करुणा तेरे नाम ऐ माँ! तुझे सलाम आग़ोश-ए-मादर को यूँ पहला मकतब ठहराया कि तू ने ही आदम को मोहब्बत करना सिखाया जिस ने दिल में तेरे सभों की मोहब्बत रखी उसी ने क़दमों में तेरे जन्नत रखी अक़्ल-ए-आदमी आज इतनी क्यूँ हैरान है तू ही आदमी की पहली पहचान है तेरे ही दम से रंग-ओ-बू-ए-काएनात अज़-अज़ल ता-अबद आदम की तू है शरीक-ए-हयात सभों का तुझ पर ये ए'तिबार है शजर-ए-हयात का तू ही बर्ग-ओ-बार है ये दुनिया भी तुझ ही से नुमूदार है गिर्हसत जीवन का आश्रम है तुझ से ताबिंदा तू ही बनी फिर आदम की नजात-दहिन्दा तो ही जन्नत की पहली हक़दार है सारी इबादत परस्तिश की है तू रूह-ए-रवाँ ऐ औरत ऐसा तेरा रौशन किरदार है मोहब्बत के इस बे-कराँ सफ़र में तुझ से ही ज़िंदगी उस्तुवार है