मोहब्बत की हरारत दिल को पिघलाए बिना रह ही नहीं सकती किसी की घटती बढ़ती उम्र का उस से तअ'ल्लुक़ क्या मोहब्बत का न कोई वक़्त होता है न उस की उम्र होती है ये जब चाहे जिसे चाहे जकड़ लेती अपने सेहर में एक-दम मोहब्बत की भी कोई उम्र होती न-जाने किस ने तुम से कह दिया किस शय के नश्शे में मैं उस से जब मिला मुझ को हँसी आई थी ये सुन कर मोहब्बत के नए मफ़्हूम से वाक़िफ़ न होने पर मुझे अपनी जहालत पर मोहब्बत की भी कोई उम्र होती है मैं ख़ुद से पूछता हूँ और फिर ख़ुद ही जवाब आने से पहले मैं सिमट जाता हूँ अपनी ज़ात के बरसों पुराने ख़ोल के अंदर उसी ठिठुरे हुए माहौल के अंदर