कितनी आसानी से उस ने रख दिया रोटी का पहिया वक़्त के चक्कर के बिल्कुल सामने गोलाइयों के दरमियाँ फिर एक टुकड़ा ताड़ के लम्बे तने का जिस ने अपने बीज से बाहर निकलने की सज़ा में एक ही नुक़्ते पे दाइम घूमने और रथ के नीचे आ के कुचले जाने वाली बोटियों की मस्ख़ लाशों से गुज़रने को मुक़द्दर कर लिया वो तो ऐसे मशग़लों में मस्त है जिस सम्त चाहे जाए घूमे या नई सम्तें बनाए मेरी कच्ची शश-दरी कुटिया के बाहर इक खुला मैदान है मैदान जिस के इक सिरे से दूसरे को देखने की दूर-बीं भी सिर्फ़ उस के खेल का सामान है खेल गरचे खेल की हद तक बहुत अच्छा लगा मैं ने भी देखा तो अपनी तालियों का तड़तड़ाता गीत उस की ओके में डाला ख़ुशी से भर दिया झोली को उस की आँख से उमडे समुंदर आसमानों से गले मिलने लगे प्यास लेकिन बुझ नहीं पाई किसी भी तौर उस की ख़ुद-नुमाई की सताइश में तड़पती ज़िंदगी दाइम रहेगी हाँ मगर इक उम्र कच्ची भुरभुरी आदम की मिट्टी से बनी खेल की इक उम्र होती है जहाँ सारे खिलौने टूट जाते हैं छनक से एक दिन साँस रोके सनसनाती ख़ाली रह जाती हैं गलियाँ वक़्त की सूनी कलाई की तरह जिस पर कभी शीशे की रंगीं चूड़ियाँ अटखेलियाँ खेली न हों लाडले कंचों सी उम्रें तालियों की फूल-झड़ियों में बिखर कर टूटती हैं और उस के आसमानी मंज़रों की इक दुल्हन देखते ही देखते चरख़ा सजा कर बैठ जाती है दुखों की बर्फ़ जैसी रूई का आओ अपने ख़्वाब के रेशम से बाहर चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के टुकड़े चुनें