मोहब्बत By Nazm << तरतीब-याफ़्ता क़ारी से याद >> पहले वो रंग थी फिर रूप बनी रूप से जिस्म में तब्दील हुई और फिर जिस्म से बिस्तर बन कर घर के कोने में लगी रहती है जिस को कमरे में घटा सन्नाटा वक़्त-बे-वक़्त उठा लेता है खोल लेता है बिछा, लेता है Share on: