मैं ज़िंदा हूँ तवानाई मिरी रग रग में बहती है मैं जब चाहूँ ज़रा सा हाथ उठा कर आसमाँ छू लूँ फ़ज़ा में तैरती जाऊँ सबा हर सुब्ह दिलकश रक़्स करती है मिरी ख़ातिर शफ़क़ हर शाम सजती है कि मैं उस पर नज़र डालूँ सितारे आँख रखते हैं मिरे अबरू की जुम्बिश पर इशारा हो तो सब के सब मिरे आँचल पे आ जाएँ मैं सरगोशी करूँ तो ज़िंदगी मसहूर हो जाए ज़रा नज़रें उठाऊँ वक़्त की रफ़्तार थम जाए मैं हँसती हूँ हरी शाख़ों पे खिलते सुर्ख़ फूलों में मिरे आँसू सुनहरी तश्तरी में पेश होते हैं ख़ुदाई बारगाहों में हुज़ूरी का शरफ़ मिलता है मेरी सब दुआओं को कभी महसूस होता था