मेरी माँ को ताले लगाने की आदत नहीं थी उस के ट्रंक भी खुले रहते थे अलमारियाँ भी उसे मोहब्बत भी वाफ़र मिली थी तौक़ीर भी उसे सहेलियाँ बनाने की भी इजाज़त थी और हँसने की भी वो ग़म बाँट लेने में भी आज़ाद थी और ख़ुशियाँ तक़्सीम करने में भी उसे बहुत सराहा जाता था और चाहा भी उसे वक़ार भी दिया गया था इख़्तियार भी उसे ताले लगाने की न आदत थी न ज़रूरत उस का हाथ भी खुला था और दिल भी उस की बेटी हर रोज़ ताले खरीदती है जगह जगह लगाती है उस के पास सेंतने और छुपाने को बहुत कुछ है शादी के अगले ही रोज़ उस ने अपने पिंदार की किर्चियाँ समेट कर दराज़ में रक्खीं इज़्ज़त-ए-नफ़्स के टुकड़े अलमारी में छुपाए अपने वक़ार की उड़ती धज्जियाँ समेट कर ट्रंक में डालीं हर जगह ताला लगाना पड़ा उसे न सहेलियाँ बनाने की इजाज़त है न हँसने की उस के लबों पर क़ुफ़्ल ज़रूरी है वो न किसी का ग़म बाँट सकती है न ख़ुशियाँ उसे न वक़ार दिया गया है न इख़्तियार उस के हाथ भी बंधे हुए हैं पाँव भी कोई किसी ट्रंक में न देख ले किसी दराज़ में न झाँक ले कोई आँखों में न देख ले कोई दिल में न झाँक ले ताले लगाना उस की ज़रूरत भी है मजबूरी भी