मुजरिम होने की मजबूरी By Nazm << नज़र भर देख लूँ बस मुझे हँसना पड़ा आख़िर >> वज़ू जाए तो जाए फ़रिश्ते कुछ भी लिख लें नामा-ए-आमाल में मेरे मगर मुँह से मिरे गाली तो निकलेगी अगर इस तौलिये में च्यूंटियाँ होंगी थकन से चूर हो कर जिस से माथे का पसीना पोंछता हूँ मैं Share on: