पता है तुम्हारे साथ मेरे साथ कितने इत्तिफ़ाक़ इक साथ हुए होंगे तो ये सूरत बनी है कि हम इक साथ साँसें ले रहे हैं कि हम इक साथ हैं इस वक़्त दुनिया में यही सब से बड़ा रिश्ता है शायद मुझ में तुम में मैं ऐसा जानता हूँ कि इस रिश्ते से हर इंसाँ जो दुनिया में है रिश्ते-दार है मेरा मगर इन रिश्ते-दारों को नहीं मालूम मेरे मैं क्या लगता हूँ इन का सो मैं भी तआरुफ़ इस हवाले से कभी उन को नहीं देता मिरी ख़्वाहिश बस इतनी है कि मैं जाने से पहले इस जहाँ से ज़ियादा से ज़ियादा अपने लोगों को नज़र भर देख लूँ बस तो छू कर देख लूँ बस समझ में आ गया अब सहर से शाम तक मैं किस लिए सड़कों पे फिरता हूँ मैं खिड़की से लगी इक सीट की ख़ातिर सफ़र में किसी बच्चे की सूरत क्यूँ झगड़ता हूँ