मुझे बारिश से कहने दो जवाँ जज़्बों में बहने दो कि जब बारिश बरसती है हवाएँ सर्द चलती हैं मुझे वो याद आते हैं मिरे आँसू बहाते हैं मुझे बारिश से कहने दो जवाँ जज़्बों में बहने दो मुझे वो रात का मंज़र अभी तक याद है साहब खुली छत पर तुम्हारे संग रह कर भीग जाना भी मुझे बारिश से कहने दो जवाँ जज़्बों में बहने दो तुम्हारी बाँहों की नर्मी भी तुम्हारी साँसों की गर्मी भी मुझे जब याद आती है बहुत आँसू रुलाती है मुझे बारिश से कहने दो कि तुम तन्हा नहीं आना मिरा महबूब भी लाना मैं उस के साथ खेली हूँ बिना उस के अकेली हूँ जवाँ जज़्बों में बहने दो मुझे बारिश से कहने दो