मेरी नाकाम मोहब्बत की कहानी मत छेड़ अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना ज़िंदगी तल्ख़ सही ज़हर सही सम ही सही दर्द ओ आज़ार सही जब्र सही ग़म ही सही लेकिन इस दर्द-ओ-ग़म ओ जब्र की वुसअत को तो देख ज़ुल्म की छाँव में दम तोड़ती ख़िल्क़त को तो देख अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना मेरी नाकाम मोहब्बत की कहानी मत छेड़ जल्सा-गाहों में ये दहशत-ज़दा सहमे अम्बोह रहगुज़ारों पे फ़लाकत-ज़दा लोगों के गिरोह भूक और प्यास से पज़-मुर्दा सियह-फ़ाम ज़मीं तीरा-ओ-तार मकाँ मुफ़लिस ओ बीमार मकीं नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद हर तरफ़ आतिश ओ आहन का ये सैलाब-ए-आज़ीम नित-नए तर्ज़ पे होती हुई दुनिया तक़्सीम लहलहाते हुए खेतों पे जवानी का समाँ और दहक़ान के छप्पर में न बत्ती न धुआँ ये फ़लक-बोस मिलें दिलकश ओ सीमीं बाज़ार ये ग़लाज़त पे झपटते हुए भूके नादार दूर साहिल पे वो शफ़्फ़ाफ़ मकानों की क़तार सरसराते हुए पर्दों में सिमटते गुलज़ार दर-ओ-दीवार पे अनवार का सैलाब-ए-रवाँ जैसे इक शायर-ए-मदहोश के ख़्वाबों का जहाँ ये सभी क्यूँ है ये क्या है मुझे कुछ सोचने दे कौन इंसाँ का ख़ुदा है मुझे कुछ सोचने दे अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना मेरी नाकाम मोहब्बत की कहानी मत छेड़