फिर इक सर्द ठिठुरा हुआ दिन दबे पाँव चलता हुआ बॉलकनी से कमरे में आया मुझे अपने बिस्तर में दुबका हुआ देख कर मुस्कुराया और आराम-कुर्सी पे बैठा घड़ी गोद में रख के काँटा घुमाया थके पाँव चलता हुआ बॉलकनी को लौटा तो चारों तरफ़ से अँधेरों ने बढ़ के उसे फाड़ खाया