मैं जब उस शहर का क़स्द करता हूँ तुम्हारी आँखें मेरा रस्ता रोक लेती हैं तुम जानती हो मेरा वहाँ जाना ज़रूरी है वहाँ मेरे लोग हैं जिन से मेरा मुकालिमा कई सदियों से बंद है मुझे उस शहर को जाना है मगर इस शहर के बाग़ और परिंदे मेरे पाँव पकड़ लेते हैं ख़ुश-अंदाम दो-शीज़ाओं के सीनों के गुलाब मेरी बे-ताबियों के लिए ख़ुद को वा कर देते हैं मुझे उस शहर को जाना है मगर इस शहर के सब से बड़े ताजिर ने मेरी आरज़ूएँ मेरे ख़्वाब मेरा सारा असबाब-ए-सफ़र ख़रीद लिया है