मुक़ाबला-ए-हुस्न By बोल्ड पोयम, Nazm << नज़्र-ए-फ़िराक़ मेरे हाथ >> कूल्हों में भँवर जो हैं तो क्या है सर में भी है जुस्तुजू का जौहर था पारा-ए-दिल भी ज़ेर-ए-पिस्ताँ लेकिन मिरा मोल है जो इन पर घबरा के न यूँ गुरेज़-पा हो पैमाइश मेरी ख़त्म हो जब अपना भी कोई उज़्व नापो! Share on: