चाँद सी सूरत जो देखी जान के लाले पड़े ज़ुल्फ़ रुख़ पर यूँ थी बिखरी मन पे जों काले पड़े किस ग़ज़ब की सादा-लौही क़हर वो तर्ज़-ए-ख़िराम मस्त आँखें दो छलकते मय के पैमाने मुदाम गाल दोनों गुल-ब-दामन सर्व सा क़द ला-जवाब लहलहाता था जो जोबन डगमगाता था शबाब हाए तीखी तीखी चितवन आह प्यारा प्यारा नाम कौन जाए किस को भेजूँ तू सबा ले जा पयाम कह ये उस से ऐ दिल-आरा अब नहीं है ताब-ए-ज़ब्त है जो तुझ पर मरने वाला हो चला है उस को ख़ब्त क्या बिगड़ जाएगा तेरा रहम से तू ले जो काम तू है अपना आप मालिक वो मगर तेरा ग़ुलाम अश्क हैं दिन-रात जारी सुर्ख़ जैसे जू-ए-ख़ूँ गर यही हालत रहेगी आख़िरश होगा जुनूँ आह इक आलम है तारी काम होता है तमाम चल सितमगर ले ख़बर अब ज़ीस्त है तुझ बिन हराम