मिरे हाथ कितने मुक़द्दस जो वक़्त-ए-दुआ अर्श-ए-आज़म को छू लें अमीं हैं मिरे आँसूओं के जो दामन से पहले इन्ही पर गिरे थे मिरे हाथ सब पर मुक़द्दम जो तक़दीर मेरी बनाते रहे हैं जो तक़दीर लिखते लिखाते रहे हैं लकीरें मिरे हाथ में जो बनी हैं इन्हें चूमता हूँ इन्हें रेहल-ओ-जुज़दाँ की हाजत नहीं है न ये ताक़ के दामन-ए-ना-रसा में ये कश्फ़-ओ-करामत की दुनिया से आरी ये हर्फ़-ओ-हिकायत से बेबाक मुतलक़ अमल इन का पेशा अमल इन की जन्नत ये जन्नत के रहबर दुआओं के शहपर मिरे हाथ कितने मुक़द्दस