मुसाफ़िर ठहर जा अब तेरे हिस्से का सफ़र तय हो चुका है धूप और बारिश लपेटी जा चुकी है अब सफ़र कैसा कि जब रस्ता लपेटा जा चुका है जब रफ़्तार का हर पल समेटा जा चुका है मुसाफ़िर ठहर जा अब कि तुझ को रुकने का इशारा हो चुका है सफ़र पूरा हुआ तुझ को सँवारा जा चुका है