मुश्तरका मफ़ाद By Nazm << न जाने कब लिखा जाए मुझे विर्सा नहीं मिला >> अर्ज़-ए-तश्कीक के ज़र्रा-ए-बे-नुमू तेरी आग़ोश में मेरी उम्मीद है उस को आज़ाद कर फूलने दे उसे फल उतरने लगेगा तो तेरी भी क़िस्मत बदल जाएगी Share on: