रक़्स करती हुई गुनगुनाती हुई मुस्कुराती हुई ज़िंदगी क्या हुई जगमगाते हुए शहर को क्या हुआ रौशनी क्या हुई फूल जैसे बदन रंग-ओ-बू के चमन प्यार के साहिलों की फ़ज़ा फूल की डालियों से लिपटती हवा चश्म-ए-एहसास के सामने दूर तक आज कुछ भी नहीं अहद-ओ-पैमाँ के रिश्तों को किस की नज़र खा गई दोस्ती क्या हुई कितने गुल-रंग पैकर मिले ख़ाक में कितने कड़ियल जवाँ अपने सीनों पे ज़ख़्मों के तम्ग़े सजाए शहादत के दर्जे पे फ़ाएज़ हुए हर तरफ़ है धुआँ शोर-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ वहशत-ए-बे-अमाँ दश्त ओ दर हैं सवाली बताए कोई ज़िंदगी क्या हुई रक़्स करती हुई गुनगुनाती हुई मुस्कुराती हुई ज़िंदगी क्या हुई