तेरे लिए में क्या क्या सदमे सहता हूँ संगीनों के राज में भी सच कहता हूँ मेरी राह में मस्लहतों के फूल भी हैं तेरी ख़ातिर काँटे चुनता रहूँगा तू आएगा उसी आस पे झूम रहा है दिल देख ऐ मुस्तक़बिल इक इक कर के सारे साथी छोड़ गए मुझ से मेरे रहबर भी मुँह मोड़ गए सोचता हूँ बे-कार गिला है ग़ैरों का अपने ही जब प्यार का नाता तोड़ गए तेरे भी दुश्मन हैं मेरे ख़्वाबों के क़ातिल देख ऐ मुस्तक़बिल जहाँ के आगे सर न झुकाया मैं ने कभी सिफ़लों को अपना न बनाया मैं ने कभी दौलत और ओहदों के बल पर जो ऐंठें उन लोगों को मुँह न लगाया मैं ने कभी मैं ने चोर कहा चोरों को खुल के सर-ए-महफ़िल देख ऐ मुस्तक़बिल ज़ुल्फ़ की बात किए जाते हैं दिन को यूँ रात किए जाते हैं चंद आँसू हैं उन्हें भी 'जालिब' नज़र हालात किए जाते हैं