ये कैसी जंग है जो अपनी मंफ़अत के लिए ग़रीब मुल्कों की आज़ादियों को छीनती है ये कैसी जंग है जिस में मुक़ाबले के बग़ैर निशाना साध के गोली चलाई जाती है ये कैसी जंग है जिस में असीर लोगों पर अज़िय्यतों के लिए कुत्ते छोड़े जाते हैं ये कैसी जंग है जिस में बमों की यूरिश से समाअ'तें भी ख़ुदा की पनाह चाहती हैं ये कैसी जंग है शहरों की तंग गलियाँ भी भड़कते शो'लों से रौशन दिखाई देती हैं ये कैसी जंग है जिस में वफ़ा-परस्तों की हलाकतों की ख़बर भी उड़ाई जाती है चलो ये पूछें तबाही के काश्त-कारों से ब-नाम-ए-अम्न कहाँ तक लहू बहाओगे निकल के देखो कभी एटमी हिसारों से तमाम आलम-ए-इंसानियत है शर्मिंदा ये सोचो ख़ून के सौदागरो ज़रा सोचो लहू की नदियाँ बहेंगी अगर ज़मीनों पर तुम्हारी काश्त के पुर-हौल मंज़रों को लिए तुम्हारे मुल्कों के शहरों को भी डुबो देंगे हर एक ज़ुल्म तुम्हें अपना याद आएगा पनाह ढूँडोगे तुम रात के अँधेरों में मगर वो रात भी शो'लों में डूब जाएगी ये वक़्त तुम पे क़यामत से कम नहीं होगा तुम्हारे कर्ब का हम को भी ग़म नहीं होगा