मुतरिबा साज़ उठा रात चली जाएगी फिर वही गीत सुना रात चली जाएगी शब की आग़ोश में मदहोश सितारे होंगे दिल पे तन्हाई के चलते हुए आरे होंगे सुब्ह फिर होगी वही शोख़ नज़ारे होंगे ग़म के मारों ने कहा रात चली जाएगी मुतरिबा साज़ उठा रात चली जाएगी ज़ुल्फ़ खोले हुए बरसात का मौक़ा आया बाद मुद्दत के मुलाक़ात का मौक़ा आया हाए तक़दीर से ये बात का मौक़ा आया शम-ए-उमीद जला रात चली जाएगी मुतरिबा साज़ उठा रात चली जाएगी तुझ को ‘ज़र्रीन’ चमकते हुए तारों की क़सम इन मचलती हुई मदहोश बहारों की क़सम हुस्न-ए-रंगीं की क़सम चाँद सितारों की क़सम दिल-रुबा लौट भी आ रात चली जाएगी मुतरिबा साज़ उठा रात चली जाएगी