दुखेगा और मेरा मन न देखो बढ़ेगी और भी उलझन न देखो हँसाता हूँ सभों को बस ये देखो मिरा भीगा हुआ दामन न देखो तुम अपने चाक-दामन की ख़बर लो मिरा बोसीदा पैराहन न देखो ख़ुद अपने आप से डर जाओगे तुम अंधेरे में कभी दर्पन न देखो न हर्फ़ आए कहीं मर्दांगी पर बुरी नज़रों से हुस्न-ए-ज़न न देखो अगर है हुस्न बे-पर्दा तो देखो मगर तुम जानिब-ए-चिलमन न देखो सही लिक्खो तो आँखें बंद कर लो जो होती है कोई क़दग़न न देखो फ़क़त तन्क़ीद ही करने की ख़ातिर नज़र वालों किसी का फ़न न देखो किसी बेकस की दुख़्तर ब्याह लाओ शराफ़त देखो उस का धन न देखो ये देखो घर में दीवारें हैं छत है बड़ा-छोटा कभी आँगन न देखो अभी सब ज़ख़्म ताज़ा और हरे हैं अभी तुम 'ख़्वाह-मख़ाह' नाख़न न देखो