इफ़शा-ए-राज़ यार सर-ए-आम कर गया नामूस-ए-दोस्ती को वो नीलाम कर गया रुस्वाइयों के साथ वो लोगों के क़र्ज़ की अनमोल जाएदाद मिरे नाम कर गया पहली ही रात आँख चुरा कर सनम मिरा आग़ाज़ ही में वाक़िफ़-ए-अंजाम कर गया साक़ी ने मय-कदे में मिरी जेब काट ली रिंदों में मुझ को बंदा-ए-बे-दाम कर गया ज़ाहिद की आज सालगिरह है तो देखिए कैसा शरीफ़ आदमी क्या काम कर गया मग़रिब से पहले दे के हमें दावत-ए-नशात पीने का इंतिज़ाम सर-ए-शाम कर गया तौबा न तोड़ने की मिरी सारी कोशिशें साक़ी-ए-तिश्ना-काम ही नाकाम कर गया ये वाक़िआ' है दोस्त मिरा मिरे नाम से मशहूर ख़ुद हुआ मुझे बे-नाम कर गया दौलत ने उस के हुस्न के सौ ऐब छुपाए इफ़्लास मेरे फ़न को भी गुमनाम कर गया चेहरे पे कम-सिनी में थी झाड़ू फिरी हुई आया शबाब और उन्हें गुलफ़ाम कर गया शोहरत का शौक़ हद से बढ़ा जब भी 'ख़्वाह-मख़ाह' मशहूर शख़्सियत को भी गुमनाम कर गया 'ग़ालिब' के शे'र मेरे तख़ल्लुस से जोड़ कर इक शख़्स 'ख़्वाह-मख़ाह' मुझे बदनाम कर गया