नाम जब लेता हूँ होंटों पर ज़बाँ को फेरता हूँ क्यूँ कि उस के नाम में उस की ज़बाँ उस के लबों का ज़ाइक़ा है जब बदन वो नाम लेता है तो ऐसे झुनझुनाता है कि जैसे उस की ज़हरी उँगलियों ने छू लिया हो नाम उस का उस के अपने बाज़ुओं के दाएरे की तरह शोरीदा-बदन को घेरता है नाम उस का पानियों में घोल कर पी लो ज़बाँ लुक्नत-ज़दा हो जाए है, आँखें अलग चढ़ जाएँ हैं, जी कुछ कहे लब कुछ कहे है, नाम उस का ज़ानू-ए-नाकतख़दाई पर लिखे से छातियों में दूध छलकाने लगे हैं नाम उस का सियाहियों में घोलने से शेर ला-फ़ानी लिखे है नाम बंजर धरतियों में थोड़ा थोड़ा सा छिड़क देने से हर पल बेल-बूटे खींच दे है नाम उस हरजाई का लेने से हर साँकल खुले है उस को उस के नाम से आवाज़ दे दीजे तो चारों सम्त जो कोई सुने है उस के लाखों नाम दोहराने लगे है और कभी उस नाम के सुनते ही अंदर से कोई पूछे है किस का नाम लो हो और तब एहसास होवे है कि उस का हो कि अपना हो वही इक नाम तो है और तब एहसास होवे है वो हम में है कि उस का नाम हम हैं और तब एहसास होवे है कि यूसुफ़ से ज़ुलेख़ा शाम से राधा के हिज्जे ही जुदा हैं वर्ना चारों का तमाशा एक सा है