रात के मेदे में कारी ज़हर है जलता है जिस से तन बदन मेरा मैं कब से चीख़ता हूँ दर्द से चिल्लाता फिरता हूँ तशद्दुद ख़ौफ़ दहशत बरबरियत और मुग़ल्लिज़ रात की रानों में शहवत एक काला फूल बनती है शहवत जागती है घूरती है सुर्ख़ आँखों से वो चेहरे नोचती खाती है अपने तुंद जबड़ों से ये कैसा ज़हर है जो फैलता जाता है मेदे में ये कारी ज़हर है जो रात के मेदे से टपका है तशद्दुद ख़ौफ़ दहशत बरबरियत रात के काले सितम-गर सियाह माथे पर नदामत ही नदामत है