भगवान मिरे दिल को वो ज़िंदा तमन्ना दे जो हिर्स को भड़का दे और जेब को गरमा दे वादी-ए-सियासत के इस ज़र्रे को चमका दे इस ख़ादिम-ए-अदना को इक कुर्सी-ए-आला दे औरों का जो हिस्सा है मुझ को वही दाता दे महरूम-ए-बताशा हूँ तू पूरी न हल्वा दे हाँ मुर्ग़-ए-मुसल्लम दे हाँ गर्म पराठा दे सूखी हुई आँतों को फ़ौरन ही जो चिकना दे तहरीर में चुस्ती दे तक़रीर में गर्मी दे जनता को जो फैलाए और क़ौम को बहका दे कुर्सी-ए-वज़ारत पर इक जस्त में चढ़ जाऊँ तदबीर को फुरती दे तक़दीर को झटका दे सिखला दे मुझे दाता वो राज़-ए-जहाँबानी क़तरे से जो दरिया दे दरिया को जो क़तरा दे मुफ़्लिस की लंगोटी तक बातों में उतरवा लूँ एहसान के पर्दे में चोरी का सलीक़ा दे क़ातिल की तबीअत को बिस्मिल की अदा सिखला ख़ूँ-रेज़ी के जज़्बे को हमदर्दी का पर्दा दे थोड़ी सी जो ग़ैरत है वो भी न रहे बाक़ी एहसास-ए-हमीय्यत को इस दिल से निकलवा दे अल-क़िस्सा मिरे मालिक तुझ से ये गुज़ारिश है मुर्ग़ी वो इनायत हो सोने का जो अण्डा दे