मुझे नफ़रत से नफ़रत है ये वो इफ़रीत है जो गुलशन-ए-लब पे सजाता है रिदा-ए-ख़ार-ए-दुश्नामी ये दस्त-ए-बे-ज़रर में ख़ंजर-ए-क़ातिल उगाता है ये उन आँखों को जो मासूम-तर हैं ज़िया-ए-क़हर-ए-ना-ज़ेबा दिखा कर सुर्ख़ करता है ये हँसते खेलते आबाद घर को बिलकती सिसकियों से और अश्कों से समाता है ग़रज़ ये कज-अदा इफ़रीत ख़ुश-हाली के रिश्तों की रुकावट है मुझे नफ़रत से नफ़रत है