ये अफ़सर है इसे मालूम है ये कि इस के दस्तख़त से क्लरकों मालियों की और चपरासी की तनख़्वाहों के बिल ख़ज़ाने से निकलते हैं हर इक मातहत है जो काम उस का कभी तो कुछ न कुछ पड़ता है इस से ये कारिंदों की मजबूरी मगर इस के लिए तो एक पैग़ाम-ए-तिजारत है हर इक तनख़्वाह के बिल के एवज़ और हर इक अर्ज़ी के नाते ये अपने दस्तख़त को बेचता है ख़ुद अपने हिर्स के ऊँचे महल को किसी के ख़ून पसीने और मेहनत की कमाई से हमेशा सींचता है