ये हक़ीक़त है तुम्हें याद नहीं मैं लेकिन ये हक़ीक़त तो नहीं प्यार नहीं था मुझ से अब चलो मान लिया ये भी हक़ीक़त ही है क्या हक़ीक़त से मैं अंजान रहा इतने दिन कैसे अंजान रहा कैसे ख़बर हो न सकी बे-ख़बर ख़ुद से था या तुम ने गुमाँ में रखा बे-ख़बर था मैं अगर ख़ुद से तो आख़िर क्यों था गर गुमाँ में रखा तुम ने तो रखा क्यों आख़िर ख़ैर छोड़ो ये गुमाँ का भी सफ़र अच्छा था ख़ैर छोड़ो जो किया तुम ने बहुत अच्छा किया