नज़्म By Nazm << कभी ऐसा तमव्वुज तुम ने दे... ये बात समझ में आई नहीं >> दहकती रातों की चाँदनी में हवा से पत्तों की सरसराहट बहकती साँसों की कपकपाहट जवान बाँहों के गर्म हाले सुकूत-ए-शब को बढ़ा रहे हैं पिघल रही है ये बर्फ़-साअत Share on: