रात काग़ज़ क़लम का अजब खेल था उन के क़दमों का नक़्शा बनाया गया और क़दमों में दिल को सजाया गया दिल की मेराज थे नक़्श-ए-पा प्यार के क्या मचलता था दिल ज़िंदगी वार के और फिर जाग उट्ठी अदा हुस्न की मेरा दिल उन के ज़ेर-ए-क़दम आ गया मेरी जुरअत तो देखो ऐ जान-ए-वफ़ा अपना ज़ौक़-ए-जुनूँ आज़माता रहा तेरे क़दमों को मैं ने मिटाया नहीं दिल कुचलते रहे दिल बनाता रहा