जिस के शेरों की लड़ियाँ... मोहब्बत के माथे का सिंघार थीं जिस के बे-ताब जज़्बों की मीठी कसक लुत्फ़ की दास्तानों का उनवान थी जो गुलाबी रुतों का महकता हुआ सुर्ख़ पैमान थी आज ख़ामोश है... नफ़रतों के अलाव से उठता धुआँ ज़र्द शामों के इस मातमी अहद को... दे गया है सुलगते लहू की हुमक फूल का इश्क़ पेशा गुलाबी बदन क़ब्र के ज़र्द कत्बे का दरबान है तितलियाँ मर चुकीं! चाँद ख़ामोश है... जुगनुओं का क़बीला सियह-पोश है नज़्म की शाएरा! मरसिए माँगती, बे-गुनाही का ताज़ा लहू थूकती उड़ते बारूद के ज़हर से खाँसती हाँफती-काँपती नज़्म कैसे लिखे