घने पेड़ शाख़ों पे बौर और ऊँचे पहाड़ हरी झाड़ियाँ और सब्ज़े की मोटी तहें सड़क के किनारों पे खम्बों के तार हवा से हिलें सरसराएँ रसीले झकोरों में वो तेज़ नश्शा कि बस सो ही जाएँ किसी एक को प्यास लग जाए तो सब के सब खेलते मुस्कुराते नशेबी चटानों में बहते हुए मीठे झरने की जानिब चलें और हाथों के प्याले को इक दूसरे के लबों से लगा दें कभी कोई बस आए और जो भी उतरे ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत से अहवाल-पुर्सी करे और अस्बाब सर पर धरे गाँव का रास्ता ले कभी कोई चरवाहा कंधे पे लाठी रखे और हाथों को लाठी पे लटकाए आहिस्ता आहिस्ता रेवड़ लिए गुज़रे और पूछता जाए क्यूँ जी कहाँ जा रहे हो कभी दूर के खेत से इक मधुर तान उठे और सब भूल जाएँ कि क्या कह रहे थे फिर अब्बा नज़र आएँ और कंकरों और लकीरों की दिल-चस्प मासूम बाज़ी को सब भूल जाएँ कोई ज़ीन घोड़े पे कसने लगे कोई सामान उठाए शहर से आने वाले फलों की महक हर तरफ़ फैल जाए खिलौनों की झंकार दिल में अजब गुदगुदी सी मचाए हवेली के चोबी मुनक़्क़श बड़े दर पे दादी खड़ी मुंतज़िर हों नाश्ता कब से तय्यार है आठ बजने को हैं आज ऑफ़िस नहीं जाएँगे क्या