नज़्म By Nazm << एक डब्बा शाइ'र के लिए... मुरव्वत >> चुप रहूँगा तो ज़बाँ यूँ भी रहेगी बेकार और बोलों तो ज़बाँ काट ही ली जाएगी क्यूँ न कुछ बोल ही लूँ मैं कि पस-ए-क़त्ल-ए-ज़बाँ ये तो अफ़्सोस न होगा कि ज़बाँ रहते हुए मुझ को इज़हार-ए-ख़यालात की जुरअत न हुई मुझ से इस ज़ुल्म-ओ-सितम की भी शिकायत न हुई Share on: