अगर मैं ये नज़्म न लिखता तो मोहब्बत नाराज़ हो जाती और कहती कि मैं तुम्हारे साथ सड़क पार नहीं करूँगी चाय नहीं पियूँगी और दफ़्तर में काम नहीं करूँगी मोहब्बत की नाराज़गी किसी जंग में होने वाले नुक़सान से ज़ियादा शदीद होती है वो और भी कुछ कहती जो मुझे सुनाई न देता और मैं उस के नाम एक ख़त लिखता अगर मैं वो ख़त न लिखता तो मेरे दोस्त नाराज़ हो जाते और कहते हम इतवार के दिन तुम्हारे साथ क्रिकेट नहीं खेलेंगे और उन में से एक रेलवे-लाइन पार करते हुए ख़ुद-कुशी कर लेता और हमारे लाए हुए फूल अपनी क़ब्र पे रखने से इंकार कर देता अगर मैं ख़त न लिखता अगर मैं नज़्म न लिखता तो ज़िंदगी अपना ज़ाइक़ा किस ज़बान पे महसूस करती ख़्वाब किस रस्म-उल-ख़त में लिखे जाते मौत के रास्ते में बिछाई जाने वाली बारूदी सुरंग कौन सी सर-ज़मीन पे तय्यार होती पनाह देने के लिए हमेशा किस मुल्क की सरहदें खुली रहतीं धमाके से फट जाने के लिए हर बार कौन सा दिल आगे बढ़ता