मर जाएँगे ज़ालिम की हिमायत न करेंगे अहरार कभी तर्क-ए-रिवायत न करेंगे क्या कुछ न मिला है जो कभी तुझ से मिलेगा अब तेरे न मिलने की शिकायत न करेंगे शब बीत गई है तो गुज़र जाएगा दिन भी हर लहज़ा जो गुज़री वो हिकायत न करेंगे ये फ़क़्र दिल-ए-ज़ार का एवज़ाना बहुत है शाही नहीं माँगेंगे विलायत न करेंगे हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे