मैं भी अंजान था तुम भी अंजान थे लोग हैरान थे इश्क़ आसान था इश्क़ आसान था उस की उफ़्ताद मुश्किल न थी इस क़दर अब्र की छाँव में यूँ चले जा रहे थे नए हम-सफ़र उस के आगे मगर थे अजब सिलसिले फिर कड़े कोस थे फिर कठिन थी डगर दूर तक बे-कराँ रेग-ए-सहरा थी फैली हुई ऐसी आँधी चली मैं भी था बे-अमाँ तुम भी थे दर-ब-दर लोग थे बे-ख़बर इश्क़ हैरान था मैं कहीं खो गया तुम कहीं जा बसे फूल खिलते रहे लोग मिलते रहे पर न मिल पाए हम ऐ मिरे हम-सफ़र फिर न कहना कभी इश्क़ आसान था इश्क़ आसान है वक़्त अपने किए पर पशेमान था कब पशेमान है हाँ वो अपना ख़ुदा जो निगहबान था वो निगहबान है