एक ज़रा सा चमका था अभी यहीं था किधर गया ज़रा झलक दिखलाई थी एक शुआ' लहराई थी मस्जिद के मीनारों से आँगन से गलियारों से कुछ लोगों ने देखा था क्या वो आँख का धोका था पल भर सामने आया था बिजली सा लहराया था दूर शफ़क़ की लाली में कड़वे नीम की डाली में हरे भरे पत्तों के बीच फूलों और फलों के बीच अब्बा जान ने देखा था अम्मी जान ने सोचा था देखे उन का बेटा भी चाँद के जैसा बच्चा भी लेकिन नट-खट ईद का चाँद कैसा झट-पट ईद का चाँद उजले गदले बादल में शाम के मैले आँचल में मुझ से छुप कर बैठा है शायद मुझ से डरता है