तिरे जाने के ब'अद By Nazm << विरासत नटराज >> बिरहन वक़्त के गेसुओं का साया पेश आता है बे-अंजाम कहानी की तरह जो फ़नकार का क़लम मख़्सूस हाशिए पर टूटने का अलमिया ठहरी और ज़ख़्म-ख़ुर्दा किताब औराक़ से लिपट कर रो पड़ती है किरदार का लहू तिरे जाने के ब'अद Share on: