तुम दे गए हो बहुत सारी रिवायतें रूसूमात कि शायद लाज़िम था तुम को मेरे मुहर्रिकात नज़र-बंद कर देना मगर महसूर रूहों का सोज़-ए-मातम शिगाफ़ कर देना चाहता है ज़ंग-आलूद बक्तर कि दम घोंटतीं बदकार हवाएँ रिहा कर दें सहाइफ़!! और नुमायाँ हो नूर-ए-क़दीम कि जद्द मेरे अंधेरा बहुत गहरा है दुआ करना