आज शब चाँद ख़ुशनुमा निकला सारी दुनिया का दिलरुबा निकला सींग छोटे हैं दो तरफ़ निकले ख़ुशनुमा नाज़ुक और चमकीले ख़ुशनुमा था न चाँद ऐसा कभी सब को सींगों की रौशनी भाई न बढ़ेगा उमीद है फिर वो न चढ़ेगा उमीद है फिर वो काश मंज़िल की उस के रह पाता दोस्तों को भी साथ ले जाता इस फ़ज़ा से जो पार होता मैं जा के उस पर सवार होता मैं बैठ जाता मैं बीच में उस के दोनों हाथों में थाम लेता सिरे अच्छा सा होता मेरा गहवारा किस क़दर दिल-फ़रेब और प्यारा फिर वहाँ से पुकारता तारो राह से मेरी दूर हट जाओ ताकि जिस दम मिरी सवारी चले मुफ़्त रौंदे न जाओ पाँव तले मैं न जाऊँगा वाँ से और कहीं सुब्ह तक झूलता रहूँगा वहीं देखूँ जाता है मेरा चाँद कहाँ और पड़ता है जा के माँद कहाँ ख़ुशनुमा कोई आसमाँ सा नहीं ठहरते हम ख़ुशी ख़ुशी से वहीं देखते वाँ तुलूअ' सूरज का उस मुनव्वर चराग़ का जल्वा सारे दिन इस को ख़ूब देखते हम शाम में फिर ग़ुरूब देखते हम बैठ कर फिर धनक पे घर आते वाँ के क़िस्सों से सब को तड़पाते